बैंगन में फूल न आने की समस्या का समाधान एक बहु-आयामी दृष्टिकोण से किया जा सकता है। संतुलित पोषण, सिंचाई, जलवायु प्रबंधन, और रोग-कीट नियंत्रण पर ध्यान देकर इस समस्या को कम किया जा सकता है। इसके अलावा, उन्नत किस्मों और जैविक प्रथाओं को अपनाकर किसानों की आय और उत्पादकता दोनों को बढ़ावा दिया जा सकता है। बैंगन की फसल में फूलों का विकास सुनिश्चित करने के लिए वैज्ञानिक प्रबंधन प्रथाओं का पालन करना आवश्यक है।
बैंगन की खेती में अच्छी वानस्पतिक वृद्धि के बावजूद फूल न आना एक आम समस्या है, जो किसानों की उत्पादकता और आय को प्रभावित कर सकती है। इस समस्या के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे पोषक तत्वों की कमी, जलवायु परिस्थितियां, रोग और कीट प्रबंधन में चूक, और खेती के गलत तरीकों का पालन।
इस लेख में हम इस समस्या के संभावित कारणों और उनके प्रबंधन के उपायों पर चर्चा करेंगे।
बैंगन में फूल न आने के संभावित कारण 1. अत्यधिक नाइट्रोजन का उपयोगपौधों की वानस्पतिक वृद्धि के लिए नाइट्रोजन आवश्यक है, लेकिन इसकी अधिकता से पौधों में पत्तियों और तनों का विकास तो होता है, लेकिन फूल बनने की प्रक्रिया बाधित हो जाती है। 2. फॉस्फोरस, पोटाश एवं सुक्ष्म पोषक तत्वों की कमीफूलों और फलों के विकास के लिए फॉस्फोरस और पोटाश जैसे पोषक तत्व आवश्यक हैं। इनकी कमी से पौधे में फूल बनने की प्रक्रिया धीमी हो सकती है। बोरॉन एवं जिंक भी फूल बनने की प्रक्रिया के महत्वपूर्ण हिस्सा है।
3. असंतुलित सिंचाईजल का अत्यधिक या अपर्याप्त उपयोग पौधों की वृद्धि और विकास को प्रभावित करता है। अधिक जलभराव से जड़ें सड़ सकती हैं और पौधों की ऊर्जा फूल बनने में खर्च होने के बजाय वृद्धि में लग जाती है।
4. जलवायु परिस्थितियांबैंगन का पौधा मध्यम तापमान पर बेहतर वृद्धि करता है। अत्यधिक गर्मी या ठंड से फूल बनने की प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
5. रोग और कीटबैंगन में रोग जैसे वर्टिसिलियम विल्ट या कीट जैसे सफेद मक्खी और थ्रिप्स फूल बनने की प्रक्रिया को बाधित कर सकते हैं।
6. पौधों की अत्यधिक घनत्व वाली रोपाई अधिक संख्या में पौधों को पास-पास रोपने से पौधों को उचित प्रकाश, हवा और पोषक तत्व नहीं मिल पाते, जिससे फूल बनने में बाधा आती है। बैंगन में फूल आने के प्रबंधन के उपाय 1. संतुलित पोषक तत्व प्रबंधननाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का संतुलित अनुपात में उपयोग करें।नाइट्रोजन का उपयोग पौधों की प्रारंभिक अवस्था में करें और फूल बनने के समय इसे कम करें। नाइट्रोजन (N)120 किग्रा/हेक्टेयर , 3 किश्तों में दें , पहली किश्त रोपाई के 15 दिन बाद। दूसरी किश्त फूल आने के समय, यदि वानस्पतिक वृद्धि बहुत अच्छी हो तो नत्रजन की दूसरी किस्त को रोक देना चाहिए। तीसरी किश्त फल बनने के समय देना चाहिए।
फूल बनने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने के लिए
ए पोटाश और फॉस्फोरस युक्त उर्वरकों जैसे सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) और म्यूरिएट ऑफ पोटाश (एमओपी) का उपयोग करें। फॉस्फोरस एवं पोटाश दोनों 60-60 किग्रा/हेक्टेयर देना चाहिए ।फॉस्फोरस एवं पोटाश दोनों की पूरी मात्रा को खेत की तैयारी के समय ही दें देना चाहिए। सूक्ष्म पोषक तत्वों, जैसे बोरॉन और जिंक @ 0.2 प्रतिशत का छिड़काव करें या जिंक सल्फेट 25 किग्रा/हेक्टेयर एवं बोरॉन 10 किग्रा/हेक्टेयर का प्रयोग खेत की तैयारी करते समय ही करना चाहिए।बेहतर उपयोग के लिए पोषक तत्वों का निर्धारण मिट्टी परीक्षण के अनुसार करना चाहिए। बोरॉन फूल बनने और परागण में सहायक होता है। 2. सिंचाई का प्रबंधनपौधों की आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। जलभराव से बचने के लिए खेत में उचित जल निकासी की व्यवस्था करें।टपक सिंचाई प्रणाली का उपयोग करके जल की बर्बादी को रोकें और पौधों को सही मात्रा में पानी दें।
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